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Rehras Sahib Path Lyrics in Hindi

Rehras Sahib Path Lyrics in Hindi

|| रहरासि साहिब पाठ हिंदी ||

हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे ॥
हरणाखसु दुसटु हरि मारिआ प्रहलादु तराइआ ॥
अहंकारीआ निंदका पिठि देइ नामदेउ मुखि लाइआ ॥
जन नानक ऐसा हरि सेविआ अंति लए छडाइआ ॥४॥१३॥२०॥

सलोकु मः १ ॥

दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥

रहाउ ॥

जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥
सो दरु रागु आसा महला १

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥
गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥
गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥
गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥

आसा महला १ ॥

सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥
केवडु वडा डीठा होइ ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥

रहाउ ॥

सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
आखण वाला किआ वेचारा ॥
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥

आसा महला १ ॥

आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥
आखणि अउखा साचा नाउ ॥
साचे नाम की लागै भूख ॥
उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥
सो किउ विसरै मेरी माइ ॥
साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥

रहाउ ॥

साचे नाम की तिलु वडिआई ॥
आखि थके कीमति नही पाई ॥
जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥
वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥
देदा रहै न चूकै भोगु ॥
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥
ना को होआ ना को होइ ॥३॥
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥
जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥
नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥

रागु गूजरी महला ४ ॥

हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥
हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥
मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥
हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥
हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥
जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥
जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥
जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥
धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥

रागु गूजरी महला ५ ॥

काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥
ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥
सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥
रागु आसा महला ४ सो पुरखु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥
सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥
तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥
तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥
जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥
तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥
तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥
तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥
तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥
से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥
तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥
तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥
जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥

आसा महला ४ ॥

तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥
जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥
तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥
तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥
तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥
विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥
जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥
हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥
तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥
जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥

आसा महला १ ॥

तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥
पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥
मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥
हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥
ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥
प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥

आसा महला ५ ॥

भई परापति मानुख देहुरीआ ॥
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥
जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ रहाउ ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥
सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
कहु नानक हम नीच करमा ॥
सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥
कबयो बाच बेनती ॥

चौपई ॥

हमरी करो हाथ दै ्रछा ॥
पूरन होइ चि्त की इछा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥
हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सि्खय सभै करतारा ॥३७८॥
मो ्रछा निजु कर दै करियै ॥
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥
तोरि भजन की रहै पियासा ॥३७९॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक सि्खय हमारे तारियहि ॥
चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥३८०॥
आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे प्छा ॥
स्री असिधुज जू करियहु ्रछा ॥३८१॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीनबंधु दुशटन के हंता ॥
तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥३८२॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥
काल पाइ शिवजू अवतरा ॥
काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥
सकल काल का कीया तमाशा ॥३८३॥
जवन काल जोगी शिव कीयो ॥
बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमशकार है ताहि हमारा ॥३८४॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत ज्छन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥
नमशकार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥
श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥३८६॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर असथूला ॥
सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥३८७॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानै ॥
घट घट के पट पट की जानै ॥३८८॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥३८९॥
जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥
आपु आपुनी बूझि उचारै ॥
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अरु आलम ॥३९०॥
निरंकार न्रिबिकार न्रिल्मभ ॥
आदि अनील अनादि अस्मभ ॥
ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥
जाको भेव न पावत बेदा ॥३९१॥
ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥
महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥३९४॥
कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥
कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥
सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥
आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥३९५॥
अब ्रछा मेरी तुम करो ॥
सि्खय उबारि असि्खय स्घरो ॥
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥
जे असिधुज तव शरनी परे ॥
तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥
जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
्रछा होइ ताहि सभ काला ॥
दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥३९८॥
क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रि्धि सि्धि घर मों सभ होई ॥
दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥३९९॥
एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुशट दोख ते रहा ॥४००॥
खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥४०१॥
क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥
ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥
किलबिख सकल देह को हरता ॥
दुशट दोखियन को छै करता ॥४०२॥
स्री असिधुज जब भए दयाला ॥
पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥
मन बांछत फल पावै सोई ॥
दूख न तिसै बिआपत कोई ॥४०३॥

अड़ि्ल ॥

सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई ॥
सुनै मूड़्ह चित लाइ चतुरता आवई ॥
दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥
हो जो याकी एक बार चौपई को कहै ॥४०४॥

चौपई ॥

स्मबत स्त्रह सहस भणि्जै ॥
अरध सहस फुनि तीनि कहि्जै ॥
भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥
तीर सतु्द्रव ग्रंथ सुधारा ॥४०५॥
इति स्री चरित्र पख्याने त्रिया चरित्रे मंत्री भूप स्मबादे चार सौ चार चरित्र समापतम सतु सुभम सतु ॥४०३॥७१३४॥

 अफजूं ॥

पांइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आंख तरे नही आनियो ॥
राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मति एक न मानियो ॥
सिम्रिति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानियो ॥
स्री असिपानि क्रिपा तुमरी करि मै न कहियो सभ तोहि बखानियो ॥८६३॥

दोहरा ॥

सगल दुआर को छाडि कै गहियो तुहारो दुआर ॥
बांहि गहे की लाज असि गोबिंद दास तुहार ॥८६४॥
रामकली महला ३ अनंदु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥

साचा नामु मेरा आधारो ॥

साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥
करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥

मुंदावणी महला ५ ॥

थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥
जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो ॥
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥

सलोक महला ५ ॥

तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥
नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥

पउड़ी ॥

तिथै तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥
ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥
सुणि कै जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥
भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥
जिन कउ लगी पिआस अम्रितु सेइ खाहि ॥
कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि ॥
सभसै नो किरपालु सम्हाले साहि साहि ॥
बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥
रागु गूजरी वार महला ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सलोकु मः ५ ॥

अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥
नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥
सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥
कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ ॥
जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥

मः ५ ॥

रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥
गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥
होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥
साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥
साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥

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